मंगलवार, 10 जनवरी 2012

ख़ामोशी

ख़ामोशी
महेंदर कुमार वैद दिल्ली
मैत्री(अभिवियक्ति) पत्रिका २००६ नाशिक से प्रकाशित.

ख़ामोशी अँधेरे मई पसरी हुई थी!
इंतज़ार मे पति के पत्नी ड्योडी पर खड़ी थी!
चूल्हा पड़ा कोने मे घासलेट और छोके के इंतज़ार मे
बच्चे पड़े अर्ध चेतन मे
ज़मीं पे पड़े बिछोने पर.
आँख लगाती तो कभी खुलती
एक आस के इंतज़ार मे
एक पिता के इंतज़ार मे.
आखिरी आस की सास है जब टूटी
जब खली हाथ आये पिता की मज़बूरी,
दर्द बन  उसकी आँखों मे झलकती.
कोने मे पड़ा बुझा स्टोप, खाली बर्तन,
जीते जागते बच्चो को लाश सा सोता,
और पत्नी की आँखों मे दर्द के अंशु झलकते देख,
उस बाप का दिल इतना पसीज जाता है,
की वो अपने साथ उन सबको एक अँधेरी
दुनिया के एक अंधेर कोने मे ले जाने को,
 विवश हो जाता है.............????
और थोड़ी ही देर मे
उस छोटे से कमरे की
दरो दीवारों के बीच
ख़ामोशी आलम....
अँधेरा बन के धीरे धीरे पसरा जाता है!
अब कौन दूसरा इस दुखद घटना पे आंशु बहाता है,
कोई कहता आत्महत्या,
तो कोई पत्रकार भी, क़र्ज़ मे डूबे,
परिवार द्वारा आत्महत्या बताकर,
अपने अपने अखबारों मे सुंदर सुंदर
हेडिंग बनाता है!
फिर दुसरे दिन अखबार वाला
सडको पर तेज़ तेज़
आवाज़ लगाकर चिल्लाता है
शराबी  ने परिवार सहित की
आत्महत्या...??????
अब गरमा ग्राम चाय की चुस्की
के साथ लोग उस खबर को
सामान्य खबरों की तरह गटक जाते है
और थोड़े समय बाद भूल जाते है!
क्योकि रोज यहाँ ख़ामोशी का आलम
अँधेरा बन किसी न किसी कमरे मे पसरा
होता है......
महेंदर

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

ट्रेफिक सिग्नल वाली लड़की

ट्रेफिक सिग्नल वाली लड़की महेंदर कुमार वैद दिल्ली मैत्री(अभिवियक्ति) पत्रिका २००६ नाशिक से

प्रकाशित.वह भागते जा रही थी और रेड लाइट पे जैसे ही एक गाड़ी रुकी, वह भाव शुन्य चेहरा , अपने खुरदरे हाथो मे एक फटा हुआ कपडा लिए उस चार के शीशों को साफ़ करने लग गई! और उस गाड़ी मे बैठे भाव प्रफुलित चहरे आपस मे ही बात करने मे व्यस्त थे ! उनका ध्यान उस अध्फटे कपडे पहने लड़की पे नहीं गया, पर उस बिखरे बाल वाली लड़की ने उस चार की धुल मिटटी को आगे पीछे से साफ़ कर, उस बंद गाडी के शिशो को बजाया तो भी उन हँसते चेहरों पर को परिवर्तन नहीं आया! लगातार दरवाजा बजाने के बाद भी जब उस गाढ़ी मे बैठे लोगो ने उस लड़की पे कोई ध्यान नहीं नहीं दिया तब उस लड़की के भाव शुन्य चेहरे पर क्रोध और उतावलेपन का आलम सवार हो चूका था! इसलिए वो गाढ़ी के बोनट को बजाने लगी क्योकि रेड लाइट खुल चुकी थी ! और वो गाडी उसकी आँखों से दूर जा चुकी थी! और वो दूर सड़क के किनारे खड़ी अपने परिश्रम का फल न मिलने का दुःख बना रही थी! लेकिन उसकी आँखों की चमक अभी भी कम नहीं हुई थी ! अभी भी उसकी आँखे एक नई गाडी के रुकने का इंतज़ार कर रही थी! उसी उत्साह और स्फूर्ति के साथ ! लेकिन वह नहीं जानती थी की उसकी गोल गोल बटन जैसी आँखों मे जो चमक थी उस चमक का कुछ वजूद था भी की नहीं. उसकी आँखों की चमक रेड लाइट पे रुकी गाडी पर जाकर टिकती है! जिसके शीशे बंद है काले शिशो पे ज़मी धुल फिर कपडे से साफ़ होती है इतने मे गाडी का शीशा खुलता है! एक हाथ थोडा सा बहार की तरफ निकलता है और उस लड़की को पचास पैसे का सिक्का पकड़ा देता है अब इतनी बड़ी गाडी का मालिक उसे पचास पैसे दे ये उसे थोडा सा नागवार गुजरा! लेकिन इस बार उसने गाडी का बोनट नहीं बजाया, उसके चहरे के भाव शुन्य से सुनये मे चले गए, उसकी आँखों की चमक काली गाडी के काले शीशी मे खो गई एक बार फिर रेड लाइट खुली और गाडी आगे निकल गई ! अब वह पुन: उसी चोराहे पे अकेले खड़ी थी जहा से उसने अपने दिन की शुरुआत की थी? उसकी आँखों की चमक उदासी की धुंधलाहट मे खो गई थी. लेकिन इसी उदासी की धुंधलाहट मे उसकी आँखों की चमक कही छुपी हुई थी. और मे ये चमक उसकी आँखों मे रोज वह से गुजरते हुए देखा करता था!!!!लेकिन आज शाम को उसके खाली हाथो मे उदासी थी आँखों मे चमक होने के बाद भी दिल के एक कोने मे अँधेरा था! उसके फटे पुराने कपड़ो मे एक लाज थी ! और वो लाज शायद किसी चीज़ की मोहताज़ थी. शायद वही चीज़ आज उसके खाली हाथो मे नहीं थी.

MERA BAND KAMRA

एक अँधेरा बंद कमरा, आपस मे गुफ्तगू करती वो चार दीवारे,सन्नाटा था बिखरा पड़ा रजाई सा, ख़ामोशी मे डूबा हुआ एक चेहरा कुछ आधे अधूरे शब्दों को पूरा करने की कोशिशे कर रहा था! कितने ही शब्द लिखता कितने ही शब्द मिटाता, फिर लिखता फिर मिटाता, फिर अपनी दुनिया के सारे नीले आकाश को,तारो को चाँद को, सूरज, ज़मी, कई बिखरती शामे, मखमली सुबहो, को अपने शब्दों मे बदलने की कोशिश करता, लिखते, लिखते कई बार उसकी कल्पना दूर तक निकल जाती, कभी उसकी कल्पना हिमालये की चोटी को छूती तो कभी खली पड़े मैदानों मे विचरती, तो कही किसी रेगिस्तान मे बिन प्य्यासे के पानी सी भटकती, कही झरने के कल कल करते पानी मे तो कही, ओस की बुँदे बन घासों मे पानी बन झूलती,तो कही दूर पतों पे धुप बन के पतों पे बिखर जाती, जब हवा चलती तो ज़मी पे पानी सी बिखर जाती, जब लिखते लिखते कई सारे पन्ने भर जाते,तो उसकी सासे दम भरने लगती, उसका दिमाग अपने ही शब्दों के भवर मे इतना उलझ जाता की उसकी आसमान छूती कल्पना का संसार उसी के कमरे की गुफ्तगू करती चार दीवारों से टकरा कर वापस उसके शब्दों मे समां जाती, मे कितना अकेला था मेरी ये कल्पना और ये ख़ामोशी, मेरे ही शब्द मुझे छोटे लगने लगे,मेरी कल्पना शब्द बन के बिखरी पड़ी थी पन्नो पे,पन्नो पे पड़ी लेंप की रोशनी भी अपनी ही परिधि मे सिमटी पड़ी थी, अपने सारे शब्दों के जाल को जलाने के लिए टेबल पे पड़ी अपनी सिगरेट को जला लिया, धुआ कमरे मे शब्द बन के दीवारों के पोरों मे गुसने लगा. अपने ही कमरे मे जब दम घुटने लगा तो पंखा चला कर बिस्तर पे लेट गया! थोड़ी ही देर मे टेबल पे रखे पन्ने ऐसे फद्फड़ाने लगे जैसे किसी मुर्गे को कांटने से पहले वो पूरी ताकत के साथ अपने पंख फदफ्द्ता है! कमरे मे फेली सीलन पंखे की रफ़्तार के साथ साथ कम होती जा रही थी, घडी की सुई टनाटन करती करती मानो मुझे चिड़ा रही थी! जैस मुझे से कह रही हो मे अपनी रफ़्तार को तुम्हारे लिए नहीं रोक सकती! बिता समय कभी वापस नहीं आता! अगर बार बार आती है तो सिर्फ और सिर्फ यादे! जिन को हम ता उम्र अपने सीने से इस प्रकार चिपका के रखते है जैसे कंगारू अपने नवजात बच्चे को अपने पेट से चिपकाए रखता है..........सच कितने याद आते है वो दिन जो बीत चुके है ...............कोई रिमोट कंट्रोल नहीं के बटन दबओ और अपनी जिंदगी को आगे पीछे करते रहो.......मेरी समृति कुंजी पटल के रोड पे कई सारी यादो की गाड़ी बेलगाम सी दोड़ने लगी! मे विराम नहीं लगाना चाहता था इस लिए सारी की सारी गाड़िया सरपट दोड़े जा रही थी! जब पेट्रोल ख़तम हो गया तब तक आँखे सो चुकी थी!................................अपने आप ही विराम लगा गया! कई बार कुछ चीज़े हमारे हाथ मे नहीं होती! इसलिए कुछ चीजों को वक़त के हवाले कर देना चाहिए! आंखे तो सो चुकी थी सपने जग चुके थे! मानो नई नवेली दुलहन अपनी शादी के पहले दिन साज़ श्रंगार करके अपने पति देव का इंतज़ार कर रही हो ! ठीक वैसे ही सपने भी टाक लगा के बैठे थे किसी होशियार शिकारी की तरह जाल मे फसा नहीं के डाप लो साले शिकार को! सपने पंख लगा के उड़ रहे थे किसी खाए पिए मदमस्त पक्षी की तरह!वही पुरानी दिल्ल्ली की पुराने रिक्शे सी हिचकोले खाती सड़के जिन पे मे कुछ दिनों पहले घूम रहा था! वही सालो पुरानी सड़के वही पुराने मकान वही पुरानी सी दुकाने वही मुग़ल काल की मस्जिद वही लाल किला वही गुरुद्वरा मेरी कल्पना और मेरा कमरा पुरानी यादो के झरोके से झाकती वो तस्वीर...........

MERA KAMRA

मेरे कमरे मे दस्तावेजों के निचे कुछ साँसे दबी हुई सी थी..जैसे जीने की मोहलत मांग रही हो . ख़ुशी फर्श पर सुबह के बिस्तर सी उलझी मुल्झी पड़ी थी! कुछ गम, कुछ गिले शिकवे दिवार पर घडी पोस्टर से डंगे चिपके पड़े थे , मेरे होने न होने का वजूद उस कमरे की दरो दीवारों के बिच कही नहीं था! बस एक गाना बज रहा था मन्दिम सी आवाज मे..... मे और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है तुम होती तो ऐसा होता तुम होती तो वैसा होता.... पंखे की आवाज के साथ ये आवाज भी कानो तक धीरे धीरे आ रही थी! मे होकर भी कही नहीं था!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

AAUO DOSTO

आओं दोस्तों एक बार फिर मिलकर.
वक़्त को जिया करेंगे.
साथ बैठ के पैग दो पैग पिया करेंगे.
अपनी यादो की फटी पुरानी कमीज़ को बातो के धागों से सिया करेंगे.
साथ बैठ के पैग दो पैग पिया करेंगे.
शुन्य सी ख़ामोशी को तोड़ के.
परेशानी की रेट सी दीवारों को फोड़ कर.
बर्फ को पैग मे डूबा कर.
मस्ती के पंख लगा कर हवा मे परिदो से खुला उड़ा करेंगे.
साथ बैठ के हम अपने पुराने समय को जिय्या करेंगे.
आओं दोस्तों साथ बैठ के हम बातो की बकेतिया किया करेंगे.

tere raaste

मेरी साँसे उलझ सी जाती है,
जब तेरी राह से गुजरने वाले रास्तो पे मे चलता हु.
ये आँखे तलाशती है तेरे कदमो के निशानों को,
जैसे तेरे कदमो के निशान मेरी मंजिल का आखिरी पड़ाव हो.
मे थम सा जाता हु,
ज़म सा जाता बर्फ सा इस सर्दी मे,
ओंस की बूंदों से तेरे नाम को लिखता हु मिटाता हु,
के तुम नहीं हो कही भी दूर तक,
और अंत मे तुमे खोता सा जाता हु,
इन भीड़ भरे रास्तो पे खुद को अकेला पाता हु,
क्य्यो जित के भी बार बार मे हार जाता हु.
तेरी न पे भी विश्वास था,
तेरी हा मे भी,
और तेरी हर बात पे.
तुम ही ने तो दिया था,
मुझे जीने का ये विश्वास,
और तुम ने ही छिना.
किसको गलत कहता, तुम को,
या फिर अपने आप को.

बुधवार, 6 जुलाई 2011

रास्ते के अगले मोड पे

मे दोबारा मिलूँगा रास्ते के अगले मोड,
ठहरा सा ओंस की बूंद बन के तेरे चेहरेपे।
और तुम मिलोगी dundh की चादर ओढ़े।
मे मिलूँगा निमी निमी धुप बन के तेरे कमरे की दरो दीवारों पे।
पक्का एक बार फिर मिलूँगा रास्ते के अगले मोड पे।